कक्षा 12 समष्टि अर्थशास्त्र – इकाई 3: मुद्रा और बैंकिंग (NCERT प्रश्न-उत्तर हिंदी में)
इकाई – 3: मुद्रा और बैंकिंग | School Economics
प्र.1 मुद्रा के कार्य क्या है? मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मुद्रा के कार्य को चार भागों में विभाजित किया जाता है।
A. प्राथमिक एवं प्रधान कार्य:
- विनिमय का माध्यम: मुद्रा ने वस्तु विनिमय के दोहरी संयोग की अभाव की कठिनाई को दूर करके विनिमय को व्यवस्थित एवं सरल बना दिया है।
- मूल्य का मापक: मुद्रा मूल्य के मापक रूप में वस्तुओं एवं सेवाओं की विनिमय शक्ति को मापने का कार्य करता है।
B. सहायक या गौण कार्य:
- मूल्य संचय का आधार: वस्तु का संचय संग्रहण की समस्या एवं सेवाओं के संचय का अभाव की समस्या को मुद्रा धन संचय के रूप में मूल्य संचय का आधार बनाया है।
- भावी भुगतान का आधार: भुगतानों को भविष्य में टालने एवं वर्तमान मूल्यों पर सौदे तथा साख का आधार मुद्रा के भावी भुगतान के गुण से ही संभव है।
- मूल्य का हस्तांतरण: मुद्रा द्वारा मूल्य का हस्तांतरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और एक स्थान से दूसरे स्थान पर सफलतापूर्वक किया जाता है।
C. अकस्मिक कार्य:
- राष्ट्रीय आय का वितरण
- साख का आधार
- पूंजी की गतिशीलता
- अधिकतम संतुष्टि का साधन
D. अन्य कार्य:
- निर्णय का वाहक
- भुगतान स्थिति की सूचक
प्र.2 केंद्रीय बैंक के वर्जित कार्य क्या है? या रिजर्व बैंक के वर्जित या निषिद्ध कार्य लिखिए।
उत्तर: रिजर्व बैंक के वर्जित कार्य निम्नलिखित हैं:
- रिजर्व बैंक अपने कार्यालय को छोड़कर किसी प्रकार की अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता और न ही इन संपत्ति पर ऋण ले सकता है।
- रिजर्व बैंक किसी भी दशा में किसी जमानत के किसी को भी देना नहीं दे सकता।
- रिजर्व बैंक किसी कंपनी के अंश एवं शेयर नहीं खरीद सकता।
- रिजर्व बैंक किसी भी प्रकार का व्यापारिक कार्य नहीं कर सकता है।
- रिजर्व बैंक अपने निक्षेपों पर इसी प्रकार ब्याज नहीं दे सकता है।
प्र.3 एक अच्छी मुद्रा के गुण लिखिए। या एक अच्छे मुद्रा पदार्थ के गुण लिखिए।
उत्तर: एक अच्छी मुद्रा में निम्नलिखित गुणों का समावेश होना चाहिए:
- टिकाऊपन: एक मुद्रा टिकाऊ होने चाहिए अर्थात एक बार जिस मुद्रा का निर्गमन किया जाए उसका वर्षों तक प्रयोग किया जाना चाहिए।
- मितव्ययिता: अच्छी मुद्रा वह है जिसमें मितव्ययिता का गुण पाया जाता है, अर्थात मुद्रा व्यवस्था कम खर्चीली होनी चाहिए।
- वहनीयता: एक अच्छी मुद्रा पदार्थ के लिए अवश्य है कि उसमें वहनीयता का गुण होना चाहिए, अर्थात मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना आसान हो।
- सामान्य स्वीकृति: मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होना चाहिए अर्थात जनमानस द्वारा मुद्रा को आसानी से स्वीकार किया जाना चाहिए।
- मूल्य स्थायित्व: अच्छी मुद्रा में मूल्यों में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होना चाहिए।
प्र.4 बैंक दर क्या है?
उत्तर: बैंक दर वह दर है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक अन्य व्यापारी बैंकों द्वारा प्रस्तुत प्रथम श्रेणी के व्यापारी बिलों की पुनर्कटौती करता है तथा स्वीकृत प्रतिभूतियों के आधार पर ऋण देने के लिए तैयार रहता है।
प्र.5 मुद्रा का अर्थ एवं मुद्रा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर: मुद्रा कोई भी ऐसी वस्तु है जिसे विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, शक्ति के संचय तथा भावी भुगतान के मान के रूप में सभी व्यक्तियों द्वारा स्वतंत्र, विस्तृत एवं सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है।
प्रो. हार्टले विदर्स के अनुसार: "मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें।"
प्र.6 केंद्रीय बैंक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: केंद्रीय बैंक वह है जो देश की समूची बैंकिंग व्यवस्था को नियंत्रित करता है। यह वह बैंक है जो देश की मौद्रिक, बैंकिंग तथा साख प्रणाली का नियमन एवं नियंत्रण करता है। भारत का केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को हुई।
प्र.7 उच्च शक्ति मुद्रा किसे कहते हैं? What is high powered Money
उत्तर: उच्च शक्ति मुद्रा या हाई पावर्ड मनी - यह मुद्रा की पूर्ति के निर्धारण से जुड़ा हुआ है। यह देश की मौद्रिक सत्ता के कुल देयताओं को स्पष्ट करती है।
इसमें जनता के पास जमा नोट एवं सिक्के की मात्रा तथा सरकार एवं व्यापारिक बैंकों के पास जमाएं शामिल की जाती हैं।
सूत्र: H = C + R
H = उच्च शक्ति वाली मुद्रा
C = जनता के पास चलन नोट एवं सिक्के
R = सरकार एवं बैंकों की आरबीआई के पास जमा
प्र.8 वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियां हैं। Barter system?
उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली का अर्थ: किसी भी अर्थव्यवस्था की वह प्रणाली जिसमें वस्तुओं के बदले वस्तुओं का लेनदेन किया जाता है। अर्थात अदला-बदली की जाती है, वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है।
आर.पी. केन्ट: "वस्तु विनिमय मुद्रा का विनिमय माध्यम के रूप में प्रयोग किए बिना वस्तुओं का वस्तुओं के लिए प्रत्यक्ष विनिमय है।"
वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियां, दोष या कठिनाइयां:
- क्रय शक्ति संचय का अभाव: वस्तु विनिमय प्रणाली में क्रय शक्ति के संचय का अभाव पाया जाता है। क्रय शक्ति संचय के अभाव में पूंजी निर्माण संभव नहीं है।
- मूल्य मापक का अभाव: वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तु का मूल्य निश्चित करना सबसे बड़ी कठिनाई है। इसमें एक सर्वमान्य मूल्यमापक का अभाव होता है।
- वस्तु विभाजन में कठिनाई: वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के विभाजन की कठिनाइयां होती हैं, जिससे विनिमय में कठिनाई आती है।
- भावी भुगतान की कठिनाई: भविष्य में किए जाने वाले भुगतान में कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं।
- दोहरे सहयोग का अभाव: वस्तु विनिमय प्रणाली में दोनों जरूरतमंद व्यक्तियों की जरूरत की वस्तुओं का संयोग मिलना जरूरी होता है।
प्र.9 मुद्रा पूर्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: मुद्रा पूर्ति से तात्पर्य है कि किसी विशेष समय में अर्थव्यवस्था में मुद्रा की कुल मात्रा से है। इसमें नगद मुद्रा एवं मांग जमा शामिल है।
विस्तृत रूप में लोगों के जेब में, लोगों के खाते में बैंकों में जमा तथा मांग जमा तथा व्यापारिक बैंकों में जमाएं जमा राशि को भी विस्तृत रूप में मुद्रा पूर्ति में शामिल किया जाता है।
प्र.10 मुद्रा के प्राथमिक कार्य क्या है? मुद्रा के गौण कार्य बताइए। मुद्रा के आकस्मिक कार्य बताइए।
उत्तर: मुद्रा के दो प्राथमिक कार्य हैं:
- विनिमय का माध्यम
- मूल्य का मापक
मुद्रा के गौण कार्य:
- मूल्य संचय का आधार
- भावी भुगतान का आधार
- मूल्य का हस्तांतरण
मुद्रा के आकस्मिक कार्य:
- राष्ट्रीय आय का वितरण
- साख का आधार
- पूंजी की गतिशीलता
- अधिकतम संतुष्टि का साधन
प्र.11 मुद्रा के स्थैतिक कार्य क्या है?
उत्तर: स्थैतिक कार्य वे कार्य हैं जो अर्थव्यवस्था का संचालन तो करते हैं किंतु उनमें गति उत्पन्न नहीं करते। इनमें विनिमय का माध्यम, मूल्य का मापक, मूल्य संचय, मूल्य का हस्तांतरण, स्थगित भुगतान आदि हैं। इन्हें निष्क्रिय कार्य अथवा तकनीकी कार्य भी कहा जाता है।
प्र.12 मुद्रा के गत्यात्मक कार्य क्या है? प्रावैधिकी
उत्तर: प्रावैगिक अथवा गत्यात्मक कार्य मुद्रा के कार्य हैं जिनसे अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियां सक्रिय रूप में प्रभावित होती हैं। यह आय स्तर, आय वितरण, रोजगार स्तर, कीमत स्तर आदि को प्रभावित करते हैं।
प्र.13 वास्तविक एवं हिसाबी मुद्रा में क्या अंतर है?
उत्तर:
| वास्तविक मुद्रा | हिसाबी मुद्रा |
|---|---|
| यह मुद्रा वास्तव में चलन होती है। | इस मुद्रा का केवल सैद्धांतिक महत्व है। |
| इसके रूप और गुणों में परिवर्तन होता रहता है। | इसके रूप में परिवर्तन नहीं होता। |
प्र.14 क्या भारतीय रुपैया प्रामाणिक मुद्रा है?
उत्तर: वर्तमान में भारतीय रुपैया पूर्ण रूप से प्रमाणिक मुद्रा नहीं है। प्रमाणिक मुद्रा के रूप में यह देश की प्रधान मुद्रा एवं असीमित विधिग्राह्य तो है। मगर यह शुद्ध धातु का नहीं बना हुआ है। और न ही इसका अंकित मूल्य वास्तविक मूल्य के बराबर है। इसलिए कहा जा सकता है कि भारतीय रुपैया पूर्ण रूप से प्रमाणिक मुद्रा नहीं है।
प्र.15 असीमित विधिग्राह्य मुद्रा क्या है?
उत्तर: यह मुद्रा है जिसे किसी भी मात्रा में ऋण एवं सेवाओं के भुगतान करने के लिए दिया अथवा लिया जा सकता है। भारत में रुपया, 50 पैसे का सिक्का तथा कागजी नोट इसी प्रकार की मुद्रा है।
प्र.16 सीमित विधिग्राह्य मुद्रा से क्या आशय है?
उत्तर: इस मुद्रा को एक निश्चित मात्रा मुद्रा से अधिक लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह सांकेतिक होती है। एक पैसे से लेकर 25 पैसे तक सभी भारतीय सिक्के सीमित विधिग्राह्य मुद्रा हैं।
प्र.17 विधिग्राह्य मुद्रा क्या है? लीगल टेंडर मनी क्या है?
उत्तर: इसे कानूनी मुद्रा भी कहते हैं। इस मुद्रा को ऋण तथा सेवा आदि के बदले भुगतान में स्वीकार करने में कोई भी व्यक्ति अस्वीकार नहीं कर सकता। भारत में रुपए पैसे और नोट सभी विधिग्राह्य मुद्रा हैं।
प्र.18 ऐच्छिक मुद्रा क्या है?
उत्तर: यह वह मुद्रा होती है जिसे स्वीकार करने के लिए कोई भी व्यक्ति बाध्य नहीं होता। यह उनकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह उन्हें ऋणों, सेवाओं के बदले में स्वीकार करें या न करें। इस श्रेणी में चेक, विनिमय विपत्र, हुंडी आदि आते हैं।
प्र.19 धातु मुद्रा क्या है?
उत्तर: धातु मुद्रा वह होती है जो किसी धातु की बनी होती है। जैसे- सोना, चांदी, तांबा आदि के सिक्के। धातु मुद्रा दो प्रकार की होती है: प्रमाणिक मुद्रा और सांकेतिक मुद्रा।
प्र.20 प्रामाणिक मुद्रा क्या है?
उत्तर: यह देश की प्रधान मुद्रा होती है। इसी के द्वारा किसी देश की वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य आंका जाता है। इसका अंकित मूल्य उसके वास्तविक मूल्य के बराबर होता है। यह असीमित विधिग्राह्य मुद्रा होती है। इसकी स्वतंत्र मुद्रा ढलाई होती है।
प्र.21 सांकेतिक मुद्रा या प्रतीक मुद्रा क्या है?
उत्तर: इस मुद्रा का प्रयोग सामान्यतः सहायक मुद्रा के रूप में किया जाता है। यह सीमित विधिग्राह्य मुद्रा होती है। इसका अंकित मूल्य इसके वास्तविक मूल्य (धात्विक मूल्य) से अधिक होता है।
प्र.22 कागजी या पत्र मुद्रा क्या है?
उत्तर: पत्र मुद्रा या कागजी मुद्रा या नोट का तात्पर्य कागज पर छपी मुद्रा से है। इसका निर्गमन आजकल सरकार स्वयं करती है अथवा उनके आदेश पर देश के केंद्रीय बैंक द्वारा किया जाता है।
प्र.23 साख मुद्रा क्या है?
उत्तर: साख मुद्रा व्यापारिक बैंकों द्वारा अपने मांग दायित्व तथा जमाओं के आधार पर निर्गत की जाती है जो चेक द्वारा स्थानांतरण होती है।
प्र.24 मुद्रा की पूर्ति की सबसे अधिक तरल माप कौन सी है?
उत्तर: मुद्रा पूर्ति की सबसे अधिक तरल माप M1 है। जिसमें जनता के पास चलन एवं सिक्कों की मात्रा, बैंकों के पास मांग जमाएं एवं अन्य जमाएं शामिल होती हैं।
प्र.25 वस्तु विनिमय की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: किसी भी अर्थव्यवस्था की वह प्रणाली जिसमें वस्तुओं के बदले वस्तुओं का लेनदेन किया जाता है। अर्थात अदला-बदली की जाती है, वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है।
प्र.26 मुद्रा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: प्रोफेसर रैली के अनुसार: "मुद्रा कोई भी ऐसी वस्तु हो सकती है जिसका विनिमय के माध्यम के रूप में स्वतंत्रता पूर्वक स्थानांतरण होता है और जो सामान्य ऋणों के अंतिम भुगतान में ग्रहण की जाती है।"
प्र.27 अधिविकर्ष क्या है?
उत्तर: जमा राशि से अधिक राशि निकालने को अधिविकर्ष कहते हैं। यह सुविधा सिर्फ विश्वासपात्र ग्राहकों को दी जाती है।
प्र.28 व्यापारिक बैंक की परिभाषा दीजिए। व्यापारिक बैंक किसे कहते हैं?
उत्तर: व्यापारिक बैंक का आशय उन बैंकों से होता है जिनकी स्थापना इंडियन कंपनी सेक्टर के अंतर्गत की गई है। और जो साधारण बैंकिंग कार्य भी संपन्न करते हैं।
प्र.29 भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?
उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण 1 जनवरी 1949 को हुआ।
प्र.30 भारत का केंद्रीय बैंक कौन सा है? उसकी स्थापना कब हुई?
उत्तर: भारत का केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को हुई।
प्र.31 बैंक का क्या है?
उत्तर: बैंकों की सर्वोत्तम परिभाषा वेब्स्टर शब्दकोश में दी गई है। वेब्स्टर शब्दकोश के अनुसार: "बैंक वह संस्था है जो मुद्रा में व्यवसाय करती है। यह एक ऐसा प्रतिष्ठान है जहां धन का जमा संरक्षण तथा निर्गमन होता है तथा ऋण एवं कटौती की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान पर रकम भेजने की व्यवस्था की जाती है।"
प्र.32 साख निर्माण से क्या आशय है?
उत्तर: साख निर्माण से तात्पर्य व्यापारिक बैंकों की उस शक्ति से है जिसके द्वारा वे प्राथमिक जमाओं के आधार पर गौण जमाओं का विस्तार करते हैं।
प्र.33 सावधि जमाएं क्या होती हैं?
उत्तर: सावधि जमा खाते में प्रायः एक निश्चित अवधि (लगभग 46 दिन से 3 वर्ष या उससे अधिक हो सकती है) के लिए रकम जमा करवाई जा सकती है। रकम जमा करते समय एक जमा रसीद मिलती है जिस पर रकम जमा होने की तारीख, रकम निकालने की तिथि तथा रकम और ब्याज की दर लिखी होती है। यह जमा रसीद अपरिवर्तनीय होती है।
प्र.34 व्युत्पन्न जमाव का आधार क्या होता है?
उत्तर: व्युत्पन्न जमा प्राथमिक जमा का परिणाम होती है। क्योंकि बैंक अपने नगद कोषों के आधार पर ही साख प्रदान करता है। व्युत्पन्न जमाओं को साख जमा भी कहते हैं।
प्र.35 विभिन्न प्रकार की बैंक जमा खाताओं के नाम लिखिए।
उत्तर: व्यापारिक बैंक विभिन्न प्रकार की जमाएं स्वीकार करता है:
- चालू जमा
- बचत जमा
- सावधि जमा
- आवर्ती जमा
प्र.36 चालू जमा खाता क्या है?
उत्तर: चालू खाते की जमाएं चालू जमाएं कहलाती हैं। चालू खाता वह खाता है जिसमें जमा की गई रकम जब चाहे निकाली जा सकती है। चूंकि इस खाते में आवश्यकतानुसार कई बार रुपए निकालने की सुविधाएं रहती हैं।
प्र.37 केंद्रीय बैंक क्या होता है?
उत्तर: केंद्रीय बैंक सर्वोच्च मौद्रिक संस्था है जो देश की समपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था को नियंत्रित करता है। केंद्रीय बैंक देश की मौद्रिक नीति का निर्माता एवं संचालक होता है।
प्र.38 बैंक दर को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: बैंक दर वह है जिस पर केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों के प्रथम श्रेणी के व्यापारिक बिलों की पुनर्कटौती करता है। और उन्हें ऋण देता है।
प्र.39 नगद संचय अनुपात सीआरआर किसे कहते हैं? CRR नगद कोष अनुपात क्या है?
उत्तर: देश के प्रत्येक व्यापारिक बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत कानूनी रूप से केंद्रीय बैंक के पास नगद कोष के रूप में जमा करना पड़ता है। जिसे नगद कोष अनुपात सीआरआर कहते हैं।
प्र.40 वैधानिक तरलता अनुपात एसएलआर क्या है? सांविधिक तरलता अनुपात SLR क्या है?
उत्तर: सांविधिक तरलता अनुपात का प्रतिशत उन जमाओं से है जिनको व्यापारिक बैंकों को अपनी कुल अस्थियों (assets) के एक निश्चित अनुपात में अपने पास तरल रूप में रखना पड़ता है।
प्र.41 रेपो रेट किसे कहते हैं?
उत्तर: रेपो रेट ब्याज की वह दर होती है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक धनराशि व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। राष्ट्र में लोगों का बैंकिंग प्रणाली में विश्वास कायम रखने की दृष्टि से व्यापारिक बैंक अपनी तरलता स्थिति को सुदृढ़ में व्यवस्थित करने के लिए प्रायः भारतीय रिजर्व बैंक से धनराशि उधार लेते रहते हैं।
प्र.42 रिवर्स रेपो रेट क्या होती है?
उत्तर: रिवर्स रेपो रेट ब्याज की दर को कहते हैं। जिस पर व्यापारिक बैंक अपनी अतिरेक कोष (surplus funds) भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा कराते हैं। ताकि ब्याज प्राप्त हो। इस प्रकार के कोषों का संबंध व्यापारिक बैंकों के वैधानिक रोकड़ संचय से नहीं होता जो कि नगद कोष के अनुपात के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा करना पड़ता है।
प्र.43 समाशोधन गृह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: केंद्रीय बैंक का सदस्य बैंकों के लिए समाशोधन गृह का कार्य करता है। केंद्रीय बैंक के समाशोधन गृह कार्य का अर्थ है वह विभिन्न बैंकों के एक दूसरे के लेनदेन को न्यूनतम नगदी के साथ निपटा देती है। क्योंकि प्रत्येक बैंक के कोष तथा खाते केंद्रीय बैंक के पास होते हैं इसलिए केंद्रीय बैंक के लिए यह तर्कपूर्ण तथा सरल कदम है।
प्र.44 खुले बाजार की क्रियाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: साख नियंत्रण में खुले बाजार की क्रियाओं से अभिप्राय केंद्रीय बैंकों द्वारा बाजार में सरकारी तथा निजी संस्थाओं की प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से होता है।
प्र.45 साख के राशनिंग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: साख के राशनिंग का आशय विभिन्न व्यवसाय क्रियाओं के लिए साख का कोटा निश्चित करने से है। जब अर्थव्यवस्था में साख के प्रवाह की जांच और विशेषता सट्टात्मक क्रियाओं में साख के प्रवाह की जांच करनी हो तो साख के राशनिंग को अपनाया जाता है। आरबीआई विभिन्न व्यवसाय क्रियाओं के लिए साख का कोटा निश्चित करता है।
प्र.46 भारत में व्यापारिक बैंकों का महत्व एवं लाभ बताइए। भारत में बैंकों का महत्व समझाइए।
उत्तर: आधुनिक वाणिज्य युग में बैंकों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है:
- बचत का गतिशीलन: देश की बचत के गतिशीलन का संपूर्ण श्रेय बैंकों को ही जाता है। बैंक के अभाव में जनता की बचत का उपयोग देश के व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योग में नहीं हो सकता।
- व्यापार व उद्योग की वित्तीय व्यवस्था: व्यापार वाणिज्य एवं उद्योगों की व्यवस्था में बैंक महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- मूल्यवान धातुओं की बचत: बैंकों द्वारा पत्र मुद्रा एवं साख पत्रों के प्रचलन के फलस्वरूप देश की बहुमूल्य धातुओं के प्रयोग में बचत हुई है।
- मुद्रा का हस्तांतरण: बैंकों के माध्यम से मुद्रा का हस्तांतरण सरल, सुगम एवं सस्ता हो गया है।
- लोचपूर्ण मुद्रा प्रणाली: बैंकों ने देश की मुद्रा प्रणाली को लोचपूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- मूल्यों में स्थिरता: साख नियंत्रण एवं साख सृजन की उपयुक्त नीति अपनाकर बैंक मूल्य स्तर में होने वाले अनावश्यक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण करते हैं।
- विदेशी व्यापार में योगदान
- बैंकिंग आदत का विकास
- ग्राहकों की सेवाएं
- पूंजी निर्माण में सहायक
प्र.47 केंद्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में अंतर समझाइए।
उत्तर:
| केंद्रीय बैंक | व्यापारिक बैंक |
|---|---|
| ऐसे नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त होता है। | यह नोट निर्गमन नहीं कर सकता। |
| यह नियंत्रक बैंक (बैंकों का बैंक) है। | यह नियंत्रित बैंक है। |
| जनता के साथ इसका कोई प्रत्यक्ष व्यवहार व संबंध नहीं रहता। | इसका जनता के साथ प्रत्यक्ष व्यवहार व संबंध रहता है। |
| यह जमा पर ब्याज नहीं देता। | यह जमा पर ब्याज देता है। |
| यह सरकार तथा व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है। | यह जनता को ऋण प्रदान करता है। |
| इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रहित में बैंकिंग व्यवस्था का संचालन है। | इसका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना तथा जनता को साख सुविधाएं प्रदान करना है। |
प्र.48 मुद्रा वह अधूरी है जिसके चारों ओर अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है स्पष्ट कीजिए। या मुद्रा का महत्व लिखना है।
उत्तर: मार्शल के अनुसार: "मुद्रा वह अधूरी है जिसके चारों ओर समस्त अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है।"
मुद्रा का महत्व:
उपभोग के क्षेत्र में मुद्रा का महत्व:
- अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति: उपभोक्ता द्वारा सम सीमांत उपयोगिता नियम का पालन करके अपने व्यय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर सकता है।
- भविष्य में भुगतान संभव: उपभोक्ता को कभी-कभी वस्तुएं उधार भी लेनी पड़ती हैं जिसका भुगतान भविष्य में करना होता है। यह मुद्रा के द्वारा आसानी से किया जा सकता है।
- संचय करना संभव: मुद्रा द्वारा मनुष्य अपनी आय का एक भाग वर्तमान उपभोग पर खर्च करके बाकी भविष्य के लिए बचा सकता है।
- विभिन्न वस्तुओं का क्रय: मुद्रा द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यकता की विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय कर सकता है।
उत्पादन क्षेत्र में:
- बड़े स्तर पर उत्पादन: मुद्रा के चलन से बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।
- श्रम विभाजन एवं विशिष्ट करण: मुद्रा द्वारा श्रम विभाजन एवं विशिष्ट करण संभव हो पाया।
- उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग: मुद्रा के कारण उत्पादक उत्पादन कार्य के लिए उत्पादन साधनों का आसानी से प्रयोग कर सकता है।
विनिमय के क्षेत्र में:
- वस्तु विनिमय की कठिनाइयों को दूर करने में मुद्रा का महत्वपूर्ण योगदान है।
- बैंक व साख संस्थाओं के विकास में मुद्रा का महत्वपूर्ण योगदान है।
- पूंजी संचय को मुद्रा ने संभव बनाया है।
- पूंजी की गतिशीलता मुद्रा के माध्यम से ही संभव हुई है।
वितरण के क्षेत्र में भी मुद्रा का काफी महत्वपूर्ण योगदान है साथ ही राजस्व के क्षेत्र में भी मुद्रा काफी महत्वपूर्ण योगदान देती है।
प्र.49 मुद्रा एक अच्छा सेवक है किंतु बुरा स्वामी है। स्पष्ट कीजिए। या मुद्रा के दोष, कमियां या सीमाएं लिखिए
उत्तर: आर्थिक दोष:
- ऋणतंत्र को प्रोत्साहन: मुद्रा द्वारा उधार लेने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है क्योंकि इसके माध्यम से उधार लेना वह देना आसान हो जाता है जिससे फिजूलखर्ची बढ़ती है।
- अति पूंजीयन एवं अतिउत्पादन को प्रोत्साहन: उद्योगपति ऋण आसानी से लेकर अति पूंजीयन और उत्पादन को बढ़ावा देते हैं।
- मुद्रा के मूल्य में अस्थिरता: मुद्रा की विनिमय शक्ति में परिवर्तन होते रहते हैं और इस परिवर्तन के विभिन्न वर्गों पर भिन्न प्रभाव पड़ते हैं लेकिन कुल मिलाकर यह परिवर्तन समाज के आर्थिक जीवन में एक बड़ी अनिश्चितता पैदा कर देते हैं।
- संपत्ति के वितरण में असमानता: मुद्रा के कारण पूंजीवाद को प्रोत्साहन मिलता है और संपत्ति के वितरण में असमानता आती है।
- वर्ग संघर्ष का उदय: मुद्रा की शक्ति के बल पर समाज में कुछ व्यक्ति अधिक धनी होते चले जाते हैं जिससे वर्ग संघर्ष की स्थिति बनती है।
नैतिक दोष: नैतिक दृष्टिकोण से भी मुद्रा सभी दोषों की जड़ है। इसने मनुष्य को लालची बना दिया है। यही मनुष्य को धोखेबाजी, चोरी, डकैती, हत्या, गबन, विश्वासघात, घूसखोरी, बेमानी तथा पाप के मार्ग की ओर ले जाती है।
सामाजिक दोष: मुद्रा के कारण भौतिकवाद, प्रलोभन, शोषण की प्रवृत्ति जैसे सामाजिक दोषों में भी वृद्धि होती है।
प्र.50 प्रमाणिक मुद्रा एवं सांकेतिक मुद्रा में अंतर लिखिए।
उत्तर:
| प्रमाणिक मुद्रा | सांकेतिक मुद्रा |
|---|---|
| यह देश का प्रधान सिक्का होता है। | यह प्रमाणिक द्रव्य का सहायक स्वरूप है। |
| यह असीमित विधिग्राह्य होती है। | यह सीमित विधिग्राह्य होती है। |
| इसका अंकित मूल्य वास्तविक मूल्य के बराबर होता है। | इसका अंकित मूल्य वास्तविक मूल्य से अधिक होता है। |
| इसकी स्वतंत्र मुद्रा ढलाई होती है। | इसकी सीमित मुद्रा ढलाई होती है। |
| यह शुद्ध धातु का बना होता है। | इसमें खोट मिला होता है। |
प्र.51 मुद्रा पूर्ति से आप क्या समझते हैं? भारत में मुद्रा पूर्ति के अंगों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर: मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक अवधारणा है। किसी समय बिंदु पर जनता के पास उपलब्ध मुद्रा का स्टॉक मुद्रा की पूर्ति कहलाता है।
भारत में मुद्रा पूर्ति के अंग या माप: मुद्रा पूर्ति की माप
M1, M2, M3 तथा M4 भारत में मुद्रा पूर्ति के चार मापक हैं।
M1 = जनता के पास करंसी + मांग जमाएं + रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं।
M2 = M1 + डाकखानों के बचत बैंकों की जमाएं।
M3 = M1 + बैंकों की सावधि जमाएं।
M4 = M3 + डाकखानों की कुल जमाएं
M4 मुद्रा पूर्ति का मापक बहुत विस्तृत किंतु सबसे कम तरल है।
M1 मुद्रा पूर्ति का मापक बहुत तरल किंतु बहुत कम विस्तृत है।
प्र.52 मुद्रा के ऐतिहासिक विकास क्रम को समझाइए।
उत्तर: मुद्रा का उद्भव कैसे और कब हुआ इसे खोज पाना असंभव और दुष्कर कार्य है। मात्र इतना अवश्य कहा जा सकता है कि मानव सभ्यता के मूलभूत तत्वों की तरह मुद्रा भी एक अत्यधिक प्राचीन तत्व है। मानव सभ्यता के क्रमिक विकास के साथ-साथ मुद्रा का भी क्रमिक विकास होता चला आ रहा है।
इतिहास में उपलब्ध प्रमाण बताते हैं कि प्राचीन काल में दक्षिण महासागर के क्षेत्र में स्थित टापू पर पत्थर की मुद्राओं का चलन था। ऋग्वेद काल में मुद्रा के रूप में गाय का प्रयोग किया जाता था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिक्कों का सर्वप्रथम प्रयोग लीडिया (Lydia) में ईसा से 6000-700 वर्ष पूर्व हुआ था। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मुद्रा के विकास क्रम को निम्नानुसार रखा जा सकता है:
- वस्तु मुद्रा
- धातु मुद्रा
- पत्र मुद्रा
- साख मुद्रा
प्र.53 मांग जमाएं क्या होती हैं?
उत्तर: मांग जमाएं वे जमाएं हैं जो बैंकों में जमा हैं और जिन्हें मांग पर निकाला जा सकता है।
प्र.54 एटीएम का पूर्ण रूप क्या है?
उत्तर: एटीएम का पूर्ण रूप Automated Teller Machine है।
प्र.55 साख गुणांक का सूत्र बताइए।
उत्तर: साख गुणांक = 1 / नगद संचय अनुपात (CRR)
प्र.56 विश्वसनीय मुद्रा क्या है?
उत्तर: विश्वसनीय मुद्रा वह मुद्रा है जिसका मूल्य सरकार के आदेश से निर्धारित होता है और जिसे स्वीकार करने में कोई अस्वीकार नहीं कर सकता।
प्र.57 क्रेडिट कार्ड क्या है?
उत्तर: क्रेडिट कार्ड एक प्लास्टिक कार्ड है जो बैंक द्वारा जारी किया जाता है, जिससे कार्डधारक खरीदारी या सेवाएं प्राप्त कर सकता है और बाद में भुगतान कर सकता है।
प्र.58 सीआरआर तथा साख गुणक के बीच किस प्रकार का संबंध होता है?
उत्तर: सीआरआर तथा साख गुणक के बीच विपरीत संबंध होता है। यदि सीआरआर बढ़ता है तो साख गुणक घटता है और vice versa।
प्र.59 अगर सीआरआर 5% है तो साख गुणांक का मूल्य क्या होगा
उत्तर: यदि सीआरआर 5% है तो साख गुणांक = 1 / 0.05 = 20
प्र.60 बैंक दर एवं ब्याज दर में क्या अंतर है?
उत्तर: बैंक दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को ऋण देता है, जबकि ब्याज दर वह दर है जिस पर बैंक ग्राहकों को ऋण देते हैं।
प्र.61 भारत में स्वर्ण विनिमय मान कब स्थापित हुआ?
उत्तर: भारत में स्वर्ण विनिमय मान 1893 में स्थापित हुआ।
प्र.62 बैंक साख का सृजन कैसे करते हैं?
उत्तर: बैंक साख का सृजन प्राथमिक जमाओं के आधार पर गौण जमाओं का विस्तार करके करते हैं।
प्र.63 केंद्रीय बैंक के कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर: केंद्रीय बैंक के कार्य: नोट निर्गमन, सरकार का बैंक, बैंकों का बैंक, साख नियंत्रण, विदेशी मुद्रा प्रबंधन, आदि।
प्र.64 सरकार के बैंकर के रूप में केंद्रीय बैंक को समझाइए।
उत्तर: केंद्रीय बैंक सरकार के लिए बैंकिंग कार्य करता है, जैसे सरकारी खाते रखना, ऋण प्रदान करना, कर संग्रहण में सहायता, आदि।
प्र.65 अनुसूचित एवं गैर अनुसूचित बैंकों में अंतर बताइए।
उत्तर: अनुसूचित बैंक वे बैंक हैं जो RBI की दूसरी अनुसूची में शामिल हैं और न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, जबकि गैर-अनुसूचित बैंक नहीं हैं।
प्र.66 भारत में केंद्रीय बैंक द्वारा साख नियंत्रण के लिए अपनाया जाने वाले मात्रात्मक एवं गुणात्मक उपायों को समझाइए। या भारतीय रिजर्व बैंक साख का नियंत्रण कैसे करता है? समझाइए।
उत्तर: मात्रात्मक उपाय: बैंक दर, खुले बाजार क्रियाएं, CRR, SLR, रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट।
गुणात्मक उपाय: मार्जिन आवश्यकता, साख राशनिंग, नैतिक दबाव, प्रत्यक्ष कार्रवाई।
प्र.67 रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साख नियंत्रण उपायों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर: RBI साख नियंत्रण के लिए मात्रात्मक (बैंक दर, CRR, SLR, रेपो) और गुणात्मक (मार्जिन, राशनिंग) उपाय अपनाता है।
प्र.68 व्यापारिक बैंकों के कार्य लिखिए।
उत्तर: जमाएं स्वीकार करना, ऋण देना, साख सृजन, चेक सुविधा, हस्तांतरण, निवेश, आदि।

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