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NCERT Solutions: कक्षा 12 व्यष्टि अर्थशास्त्र | पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्म का साम्य प्रश्न-उत्तर

NCERT Solutions: कक्षा 12 व्यष्टि अर्थशास्त्र | अध्याय 4: पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्म का साम्य (प्रश्न-उत्तर हिंदी में)

इकाई – 4: पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्म का साम्य | School Economics

प्र.1 बाजार किसे कहते हैं? बाजार की परिभाषा लिखिए। अर्थशास्त्र में बाजार किसे कहते हैं?

उत्तर: बाजार का अर्थ

परिभाषा: प्रोफेसर बेन्हम के अनुसार: "बाजार वह क्षेत्र होता है जिसमें क्रेता और विक्रेता एक दूसरे के इतने निकट संपर्क में होते हैं कि एक भाग में प्रचलित कीमतों का प्रभाव दूसरे भाग में प्रचलित कीमतों पर पड़ता रहता है।"

प्र.2 पूर्ण प्रतियोगिता बाजार क्या है?

उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता से अभिप्राय बाजार की ऐसी स्थिति से है, जिसमें किसी वस्तु विशेष के अनेक क्रेता, विक्रेता उस वस्तु का क्रय विक्रय स्वतंत्रता पूर्वक करते हैं। तथा कोई एक क्रेता अथवा विक्रेता वस्तु के मूल्य को प्रभावित करने में असमर्थ रहता है।

प्र.3 एकाधिकार बाजार की परिभाषा दीजिए।

उत्तर: जब बाजार में किसी वस्तु की पूर्ति पर एक ही उत्पादक या विक्रेता का अधिकार होता है तो ऐसी स्थिति एकाधिकार बाजार की स्थिति कहलाती है। एकाधिकार बाजार में प्रतियोगिता का अभाव पाया जाता है।

प्र.4 एकाधिकारिक बाजार से आप क्या समझते हैं? एकाधिकृत प्रतियोगिता से क्या आशय है? एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता क्या है?

उत्तर: एकाधिकारिक प्रतियोगिता बाजार में बड़ी संख्या में उत्पादक या विक्रेताओं का समूह वस्तु पर अपना एकाधिकार रखते हुए परस्पर प्रतियोगिता करते हैं। इस बाजार में उत्पादक मिलते-जुलते गुणधर्म वाली वस्तुओं का विक्रय करती है।

प्र.5 अल्पाधिकार बाजार क्या है?

उत्तर: अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें कुछ फर्में वस्तु का उत्पादन करती है और प्रत्येक फर्म का बाजार में बड़ा हिस्सा होता है। अल्पाधिकार बाजार में विज्ञापनों का काफी महत्व होता है। तथा एक विक्रेता द्वारा कीमतों में परिवर्तन का अन्य विक्रेताओं पर प्रभाव पड़ता है।

प्र.6 एकाधिकार बाजार क्या है?

उत्तर: एकाधिकार बाजार वह बाजार है जिसमें किसी वस्तु का विक्रेता एक ही व्यक्ति होता है अर्थात वस्तु की पूर्ति पर विक्रेता का पूर्ण नियंत्रण होता है। इस बाजार में प्रतियोगिता का अभाव पाया जाता है।

प्र.7 अतिअल्पकालीन बाजार क्या है?

उत्तर: जिन वस्तुओं के बाजार में उनकी पूर्ति को उनकी मांग के अनुरूप परिवर्तित नहीं किया जा सके, उस बाजार को अति अल्पकालीन बाजार कहते हैं।

प्र.8 सामान्य मूल्य क्या है?

उत्तर: दीर्घकाल में मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत को सामान्य कीमत या सामान्य मूल्य कहा जाता है। सामान्य मूल्य मांग और पूर्ति की शक्तियों के बीच स्थाई संतुलन का परिणाम है। सामान्य मूल्य के निर्धारण में मांग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव होता है।

प्र.9 बाजार मूल्य क्या है?

उत्तर: बाजार मूल्य अल्पकालीन मूल्य होता है जो अल्पकाल में मांग एवं पूर्ति के अस्थाई संतुलन द्वारा निर्धारित होता है। बाजार मूल्य निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा मांग अधिक प्रभावी होती है।

प्र.10 राष्ट्रीय बाजार क्या है? राष्ट्रीय बाजार किसे कहते हैं?

उत्तर: अर्थ: अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय बाजार का अर्थ संपूर्ण क्षेत्र से लिया जाता है। जिसमें एक वस्तु का बाजार पूरे राष्ट्र में फैला हो और उस वस्तु के क्रेता विक्रेता स्वतंत्र रूप से संपूर्ण राष्ट्र में क्रय विक्रय करते हैं और उनमें स्वतंत्र प्रतियोगिता पाई जाती है।

उदाहरण: उदाहरण के लिए चूड़ियों का बाजार, गेहूं का बाजार, साड़ी बाजार आदि।

प्र.11 पूर्ति का नियम समझाइये।

उत्तर: अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत में वृद्धि से वस्तु की पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है जबकि वस्तु की कीमत में कमी से वस्तु की पूर्ति की मात्रा में भी कमी होती है अर्थात वस्तु की पूर्ति की मात्रा और वस्तु की कीमत में धनात्मक संबंध होता है।

प्र.12 पूर्ति में वृद्धि से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: कीमतों में कुछ भी परिवर्तन ना होने पर भी पूर्ति में वृद्धि हो जाए तथा कीमतों के परिवर्तन न होने पर भी दी हुई कीमत से अधिक अनुपात में पूर्ति में वृद्धि हो उसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।

प्र.13 किसी वस्तु की पूर्ति अन्य वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन हो जाने पर किस प्रकार प्रभावित होती है?

उत्तर: प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने पर पूर्ति बढ़ेगी तथा कीमत कम होने पर पूर्ति घटेगी। पूरक वस्तुओं के संदर्भ में पूरक वस्तु की कीमत बढ़ने पर पूर्ति कम होगी, कीमत घटने पर पूर्ति बढ़ेगी।

प्र.14 'पूर्ति में परिवर्तन' से क्या आशय है?

उत्तर: पूर्ति में परिवर्तन अर्थात पूर्ति में वृद्धि या कमी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्वों में परिवर्तन के कारण पूर्ति वक्र का ऊपर या नीचे खिसकना पूर्ति में परिवर्तन है।

प्र.15 बाजार पूर्ति तालिका से क्या आशय है?

उत्तर: विभिन्न कीमतों पर बाजार में बेची जाने वाली मात्राओं को यदि तालिका में व्यक्त कर दिया जाए तो इसे पूर्ति तालिका कहते हैं। पूर्ति तालिका दो प्रकार की है:

  1. व्यक्तिगत पूर्ति तालिका
  2. बाजार पूर्ति तालिका

प्र.16 पूर्ति वक्र पर चलन और पूर्ति वक्र में परिवर्तन में अंतर बताये।

उत्तर:

पूर्ति वक्र पर चलन: केवल कीमत में परिवर्तन के कारण पूर्ति वक्र पर दो प्रकार का चलन होता है:

  1. पूर्ति का विस्तार
  2. पूर्ति का संकुचन

पूर्ति वक्र में परिवर्तन: पूर्ति वक्र में परिवर्तन से अभिप्राय है कि पूर्ति वक्र प्रारंभिक पूर्ति के ऊपर या नीचे सरक जाती है। यह परिवर्तन कीमत के अतिरिक्त आय, रुचि, फैशन आदि में परिवर्तन के कारण होता है:

  1. पूर्ति में वृद्धि
  2. पूर्ति में कमी

प्र.17 पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर भी वस्तु की पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता तो बेलोचदार पूर्ति कहते हैं। उदाहरण के लिए कीमत में 50% की वृद्धि होने पर भी पूर्ति में शून्य परिवर्तन होता है।

प्र.18 क्या एकाधिकारी बिना मुकुट का राजा होता है? विवेचना कीजिए।

उत्तर: एकाधिकार में उत्पादक या विक्रेता अकेला होता है एवं उसकी वस्तु का निकट स्थानापन्न नहीं होता। इसी कारण अन्य फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है अर्थात एकाधिकार में फर्म और उद्योग में अंतर नहीं किया जा सकता। एकाधिकार में मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है एवं अपनी वस्तु का कीमत निर्धारक होता है। इसी कारण एकाधिकारी को बिना मुकुट का राजा कहा जाता है।

प्र.19 संतुलन मूल्य क्या है? यह कैसे निर्धारित होता है? साम्य मूल्य क्या है?

उत्तर: किसी वस्तु का मूल्य उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहां पर मांग एवं पूर्ति की शक्तियां आपस में बराबर हो जाती है। इसी मूल्य को संतुलन मूल्य या साम्य कीमत कहते हैं।

साम्य मूल्य का निर्धारण मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। साम्य कीमत वह कीमत है जिस पर वस्तु की मात्रा जो विक्रेता बेचने को इच्छुक है उस मात्रा के बराबर होती है जो क्रेता खरीदना चाहता है।

प्र.20 पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की विशेषताएं लिखिए।

उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता की दशाएं/विशेषताएं:

  1. फर्म या विक्रेताओं की अधिक संख्या: किसी वस्तु को बेचने वाले विक्रेताओं की संख्या इतनी अधिक होती है, कि कोई अकेली फर्म वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती। किसी एक फर्म द्वारा पूर्ति में की जाने वाली वृद्धि या कमी का बाजार की कुल पूर्ति पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है।
  2. क्रेताओं की अधिक संख्या: केवल विक्रेताओं की संख्या ही अधिक नहीं होती, क्रेताओं की संख्या भी बहुत अधिक होती है। इसके अनुसार एक व्यक्तिगत क्रेता भी वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। व्यक्तिगत मांग में होने वाली वृद्धि या कमी का कुल बाजार मांग पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है।
  3. वस्तुओं का समरूप होना: पूर्ण प्रतियोगिता की महत्वपूर्ण विशेषता यह है, कि विभिन्न फर्म द्वारा उत्पादित वस्तुओं में समरूपता का गुण होता है। उत्पादन में समरूपता होने के कारण विक्रेता बाजार में प्रचलित मूल्य से अधिक कीमत नहीं ले सकेगा, क्योंकि क्रेता दूसरे विक्रेताओं से वस्तुएं खरीद लेंगे।
  4. पूर्ण ज्ञान: क्रेता और विक्रेताओं को बाजार में प्रचलित कीमत की पूरी जानकारी होती है। क्रेता को इस बात का पूर्ण ज्ञान होता है कि भिन्न-भिन्न विक्रेता वस्तुओं को किस कीमत पर बेच रहे हैं।
  5. फर्म का स्वतंत्र प्रवेश व निर्गमन: पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में किसी उद्योग में कोई भी फर्म प्रवेश कर सकती है, अथवा पुरानी फर्म उस उद्योग को छोड़ सकती है।

प्र.21 अल्पाधिकार बाजार की विशेषताएं लिखिए।

उत्तर:

  1. थोड़े विक्रेता: अल्पाधिकार बाजार में फर्मों की संख्या बहुत कम होती है। विक्रेताओं की नीति एक दूसरे को प्रभावित करती है।
  2. परस्पर निर्भरता: अल्पाधिकार बाजार में मूल्य संबंधी नीतियां एक दूसरी फर्मों को आपस में प्रभावित करती है।
  3. गैर मूल्य प्रतियोगिता: अल्पाधिकार बाजार में कीमत में स्थिरता या दृढ़ता पाई जाती है।
  4. विज्ञापन एवं विक्रय लागतें: अल्पाधिकार बाजार में विज्ञापन उत्पादकों के लिए जीवन एवं मरण का प्रश्न होते हैं।
  5. अनिर्धारणीय मांग वक्र: अल्पाधिकार बाजार में मांग वक्र का निर्धारण करना संभव नहीं है।
  6. फर्मों के प्रवेश एवं निकास में कठिनाई: अल्पाधिकार बाजार में भारी मात्रा में पूंजी निवेश के कारण फर्मों को बाजार में प्रवेश करना और छोड़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

प्र.22 पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार में अंतर लिखिए।

उत्तर:

पूर्ण प्रतियोगिता एकाधिकार
इसमें विक्रेताओं की संख्या अत्यधिक होती है। इसमें विक्रेता एक ही होता है।
विक्रेता का कुल पूर्ति में बहुत छोटा योगदान होता है। इसमें विक्रेता का पूर्ती पर पूर्ण नियंत्रण होता है।
फर्म कीमत स्वीकार करने वाली होती है। फर्म कीमत निर्धारक होती है।
बाजार में एक ही मूल्य प्रचलित होता है। बाजार में मूल्य विभेद संभव है।
बाजार में मांग वक्र लोचदार होता है। बाजार में मांग वक्र बेलोचदार होता है।
दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ ही संभव है। दीर्घकाल में असामान्य लाभ संभव है।

प्र.23 बाजार की विशेषताएं लिखिए। एक वस्तु बाजार की विशेषताएं लिखिए।

उत्तर: बाजार की विशेषताएं

  1. एक क्षेत्र: अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का अर्थ किसी स्थान विशेष से नहीं बल्कि उस समस्त क्षेत्र से होता है जिसमें क्रेता और विक्रेता फैले होते हैं। और उनमें आपस में स्वतंत्र प्रतियोगिता होती है।
  2. एक वस्तु: अर्थशास्त्र में बाजार एक वस्तु का होता है अर्थात प्रत्येक वस्तु के लिए अलग-अलग बाजार होता है। उदाहरण के लिए - कपड़ा बाजार, सोना बाजार, गेहूं बाजार, चीनी बाजार आदि।
  3. क्रेता एवं विक्रेता: किसी भी क्षेत्र को बाजार तभी कहा जाएगा जब उस क्षेत्र में क्रेता और विक्रेता उपस्थित हों। किसी एक पक्ष के ना होने पर वह बाजार नहीं हो सकता।
  4. एक मूल्य: बाजार में वस्तु का एक मूल्य होना आवश्यक है। स्वतंत्र एवं पूर्ण प्रतियोगिता के फलस्वरूप बाजार में पूरे क्षेत्र में वस्तु का मूल्य समान ही रहता है।
  5. स्वतंत्र प्रतियोगिता: बाजार में वस्तु के मूल्य के लिए क्रेताओं और विक्रेताओं के बीच स्वतंत्र प्रतियोगिता पाई जाती है।

प्र.24 पूर्ण प्रतियोगिता एवं अपूर्ण प्रतियोगिता में अंतर लिखिए।

उत्तर:

पूर्ण प्रतियोगिता अपूर्ण प्रतियोगिता
क्रेता विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है। क्रेता विक्रेताओं की संख्या सीमित होती है।
वस्तु समरूप होती है। वस्तु में विभेद पाया जाता है।
क्रेता विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। क्रेता विक्रेताओं को बाजार का अपूर्ण ज्ञान होता है।
मांग वक्र लोचदार होता है। मांग वक्र बेलोचदार होता है।
फर्मों का प्रवेश एवं बहिर्गमन स्वतंत्र होता है। फर्मों का प्रवेश एवं बहिर्गमन कठिन होता है।
यह बाजार की काल्पनिक दशा है। यह बाजार की व्यवहारिक दशा है।

प्र.25 बाजार मूल्य एवं सामान्य मूल्य में अंतर लिखिए। बाजार मूल्य तथा सामान्य मूल्य में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

बाजार मूल्य सामान्य मूल्य
बाजार मूल्य अति अल्पकालीन मूल्य होता है। सामान्य मूल्य दीर्घकालीन होता है।
बाजार मूल्य मांग और पूर्ति शक्तियों का अस्थाई संतुलन है, बदलता रहता है। सामान्य मूल्य मांग और पूर्ति की शक्तियों के बीच स्थाई संतुलन का परिणाम है।
बाजार मूल्य के निर्धारण में मांग का प्रमुख एवं सक्रिय प्रभाव होता है जबकि पूर्ति निष्क्रिय रहती है। सामान्य मूल्य के निर्धारण में मांग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव होता है।
बाजार मूल्य परिवर्तनशील होता है अर्थात दिन में कई बार बदल सकता है। सामान्य मूल्य स्थिर रहता है अर्थात बार-बार परिवर्तित नहीं होता है।
बाजार मूल्य किसी समय विशेष में प्रचलित वास्तविक मूल्य होता है। सामान्य मूल्य काल्पनिक होता है, जो कि व्यवहार में कभी देखने में नहीं आता।

प्र.26 बाजार के विस्तार को प्रभावित या निर्धारित करने वाले तत्व, कारक या घटक लिखिए।

उत्तर: बाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं:

  1. विस्तृत मांग: जिन वस्तुओं की मांग अत्यधिक व्यापक विस्तृत होती है, उन वस्तुओं का बाजार भी व्यापक होता है।
  2. वस्तु की वाहनीयता: जो वस्तुएं भार में कम एवं मूल्य में अधिक होती हैं, उन वस्तुओं का बाजार विस्तृत होता है।
  3. वस्तु का टीकाऊपन: जो वस्तुएं अधिक समय तक उपयोग में आती हैं, उन वस्तुओं का बाजार विस्तृत होता है।
  4. यातायात एवं संचार साधन: देश में यातायात एवं संचार के साधनों का अधिक विकास होगा तो बाजार विस्तृत होगा।
  5. वित्त की व्यवस्था: देश में विस्तृत बैंकिंग एवं वित्तीय व्यवस्था होने पर बाजार भी विस्तृत एवं व्यापक होगा।
  6. सरकारी नीतियां: देश में सरकारी नीतियां बाजार के अनुकूल होने पर बाजार विस्तृत होता है।
  7. शांति एवं सुरक्षा: देश में आंतरिक एवं बाह्य राजनीतिक एवं आर्थिक सुरक्षा बाजार को विस्तृत करती है।

प्र.27 समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण कीजिए।

उत्तर: समय के आधार पर बाजार को चार भागों में बांटा जा सकता है:

  1. अति अल्पकालीन बाजार: यह बाजार उन वस्तुओं का होता है जिनकी पूर्ति को उनकी मांग के अनुरूप परिवर्तित नहीं किया जा सकता जैसे दूध, फल, सब्जियां आदि।
  2. अल्पकालीन बाजार: यह बाजार वस्तु की पूर्ति को उपलब्ध संसाधनों की सहायता से उसके मांग के अनुरूप एक सीमा तक ही बढ़ा सकता है।
  3. दीर्घकालीन बाजार: इस बाजार में इतना समय होता है कि किसी वस्तु की पूर्ति को उसकी मांग के अनुरूप बढ़ाया जा सके। वह दीर्घकालीन बाजार के अंतर्गत आता है।
  4. अति दीर्घकालीन बाजार: इस बाजार में मांग एवं पूर्ति में निरंतर परिवर्तन एवं समायोजन की प्रक्रिया चलती रहती है। उपभोक्ता की आय, आदतें, रुचि, फैशन आदि में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप मांग में हुए परिवर्तन के अनुसार पूर्ति में भी परिवर्तन होता रहता है।

प्र.28 अल्पकाल एवं दीर्घकाल में अंतर लिखिए।

उत्तर:

अल्पकाल: अल्पकाल वह समयावधि है जिसमें उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन करना संभव नहीं होता। अल्पकाल में उत्पत्ति के अन्य साधनों की मात्रा स्थिर रखकर एक साधन की मात्रा में परिवर्तन किया जाता है।

दीर्घकाल: दीर्घकाल में उत्पत्ति के सभी साधन परिवर्तनशील हो जाते हैं।

अर्थशास्त्र में अल्पकाल को ज्यादा महत्व दिया जाता है क्योंकि अल्पकाल में एक फर्म या उपभोक्ता के व्यवहार का अध्ययन किया जा सकता है।

किन्स: "दीर्घकाल में हम सब मर जाते हैं।"

प्र.29 पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में मूल्य निर्धारण को रेखा चित्र द्वारा समझाइए।

उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में कीमत निर्धारण मांग एवं पूर्ति शक्तियों द्वारा होता है। जिसे पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग का कीमत निर्धारण कहा जाता है। अर्थात पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है। पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत को प्रत्येक फर्म दिया हुआ मान लेती है। अर्थात पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग की प्रत्येक फर्म कीमत प्राप्तकर्ता होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग के एक व्यक्तिगत फर्म उद्योग से प्राप्त कीमत में कोई परिवर्तन नहीं करती और वह केवल प्राप्त कीमत पर अपनी उत्पादन क्षमता के अनुसार उत्पादन मात्रा का समायोजन करती है।

प्र.30 पूर्ति को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं:

  1. वस्तु की कीमत: वस्तु की पूर्ति तथा कीमत में प्रत्यक्ष से सीधा धनात्मक संबंध होता है।
  2. संबंधित वस्तुओं की कीमत: अन्य वस्तुओं की कीमत वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करती है।
  3. साधनों की कीमत: उत्पादन के साधनों की कीमत वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करती है।
  4. तकनीकी स्तर: तकनीकी प्रगति पूर्ति को बढ़ा सकती है।
  5. फर्मों की संख्या: अधिक फर्मों की उपस्थिति पूर्ति को बढ़ा सकती है।
  6. भविष्य में संभावित कीमत: भविष्य की कीमतों की उम्मीदें पूर्ति को प्रभावित करती हैं।
  7. सरकारी नीति: कर, सब्सिडी, या नियम पूर्ति को प्रभावित करते हैं।

प्र.31 पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्व कौन-से हैं? वर्णन कीजिए।

उत्तर:

  1. वस्तु की प्रकृति: किसी वस्तु की प्रकृति उस वस्तु की पूर्ति की लोच को प्रभावित करती है। वस्तु टिकाऊ है या शीघ्र नष्ट होने वाली, या आवश्यक है या फिर विलासिता की।
  2. उत्पादन लागत: उत्पादन लागत में वृद्धि या कमी लोच को प्रभावित करती है।
  3. भावी कीमतों में परिवर्तन: भविष्य में वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन की संभावना से वस्तु की पूर्ति की लोच प्रभावित होती है।
  4. प्राकृतिक बाधाएं: प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पूर्ति की लोच को प्रभावित करती है।
  5. उत्पादन की तकनीक: उन्नत तकनीक पूर्ति की लोच को बढ़ा सकती है।

प्र.32 पूर्ति अनुसूची और पूर्ति वक्र की सहायता से पूर्ति के नियम को समझाइए।

उत्तर: पूर्ति का नियम: "अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि से बाजार में वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होगी। तथा वस्तु की कीमत में कमी से वस्तु की बाजार पूर्ति में कमी आएगी। अर्थात वस्तु की कीमत और बाजार में पूर्ति की मात्रा में सीधा धनात्मक प्रत्यक्ष संबंध होता है।"

पूर्ति अनुसूची:

वस्तु की कीमत (रु.) विक्रेता A विक्रेता B विक्रेता C बाजार पूर्ति
4 2 2 1 5
5 4 3 4 11
6 6 5 5 16
7 8 8 7 23
8 10 11 9 30
9 12 13 11 36

प्र.33 पूर्ति की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं? पूर्ति की लोच की विभिन्न श्रेणियों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: पूर्ति की लोच: वस्तु की कीमत में अनुपातिक परिवर्तन के परिणाम स्वरूप वस्तु की पूर्ति की मात्रा में कितना परिवर्तन हुआ यह पूर्ति की लोच से पता चलता है।

पूर्ति की लोच की श्रेणियां:

  1. पूर्णतया लोचदार पूर्ति: कीमत में कोई भी परिवर्तन ना होने पर भी पूर्ति में अनंत परिवर्तन संभव हो।
  2. इकाई से अधिक लोचदार: अधिक लोचदार पूर्ति में कीमत के अनुपात में पूर्ति की मात्रा में अधिक परिवर्तन होता है।
  3. लोचदार पूर्ति: लोचदार पूर्ति में कीमत के अनुपात में की गई पूर्ति आनुपातिक रूप से बराबर होती है।
  4. कम लोचदार या बेलोचदार पूर्ति: बेलोचदार पूर्ति कीमत के अनुपात में मांगी गई मात्रा में कम परिवर्तन को बताती है।
  5. पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति: पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति में कीमत में अनंत परिवर्तन होने पर भी पूर्ति की मांग में शून्य परिवर्तन होता है।

प्र.34 पूर्ति के नियम को समझाइए। एक पूर्ति वक्र ऊपर की ओर क्यों झुकता है?

उत्तर: पूर्ति का नियम: "अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर पूर्ति में भी वृद्धि होती है जबकि कीमत में कमी से पूर्ति में भी कमी होती है। पूर्ति के नियम में वस्तु की कीमत और मात्रा में सीधा धनात्मक संबंध होता है।"

एक पूर्ति वक्र ऊपर की ओर क्यों झुकता है: बाजार संतुलन में पूर्ति पक्ष में पूर्ति वक्र बाएं से दाएं ऊपर की ओर उठता हुआ होता है। इसका मुख्य कारण वस्तु की कीमत और वस्तु की मात्रा में धनात्मक संबंध होता है। वस्तु की कीमतें बढ़ने पर विक्रेता वस्तु की अधिक पूर्ति बाजार में करता है।

प्र.35 रेखाचित्र के द्वारा पूर्ति वक्र के साथ चलन और पूर्ति वक्र के परिवर्तन में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: पूर्ति वक्र का चलन अर्थात पूर्ति में विस्तार एवं पूर्ति में संकुचन से है:

  1. पूर्ति में विस्तार (चलन): अन्य बातें समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप पूर्ति अधिक हो जाती है तो इसे बढ़ती हुई पूर्ति को पूर्ति का विस्तार कहा जाता है।
  2. पूर्ति में संकुचन: अन्य बातें समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत कम होने के फलस्वरूप उसकी पूर्ति कम हो जाती है तो पूर्ति में होने वाली कमी को पूर्ति का संकुचन कहते हैं।

प्र.36 यदि उत्पादन के साधनों की लागत में वृद्धि होती है, तो पूर्ति वक्र पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।

उत्तर: उत्पादन के साधनों की कीमतों में परिवर्तन भी पूर्ति वक्र को प्रभावित करता है। साधनों की कीमत वृद्धि के कारण उत्पादन की सीमांत और औसत लागत बढ़ने लगती है। परिणामस्वरूप उत्पादक प्रचलित कीमत पर कम पूर्ति कर पाते हैं और पूर्ति वक्र बाईं ओर पीछे खिसक जाता है।

प्र.37 पूर्ति की कीमत लोच को मापने की दो विधियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:

  1. अनुपातिक या प्रतिशत रीति: इस रीति द्वारा पूर्ति लोच मापने के लिए पूर्ति में होने वाले अनुपातिक या प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में होने वाले अनुपातिक या प्रतिशत परिवर्तन से भाग दे दिया जाता है।
  2. सूत्र: पूर्ति की लोच = (पूर्ति की मात्रा में अनुपातिक परिवर्तन)/(कीमत में अनुपातिक परिवर्तन)

    es = ∆Q/Q ÷ ∆P/P

  3. बिंदु या ज्यामिति रीति: यह रीति की लोच की माप बिंदु रीति अथवा ज्यामिति रीति द्वारा की जा सकती है। चित्र में ss पूर्ति रेखा के प्रत्येक खंड में p बिंदु पर पूर्ति की लोच की माप की गई है।

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